द गर्ल इन रूम 105–३८
रिपोर्टर ने अपनी बात जारी रखी।
'नो, अरिजीत, अभी तक किसी की भी गिरफ्तारी नहीं हुई है। केशव जांच में पुलिस की मदद कर रहा है या अभी वह केवल पुलिस हिरासत में है, हमें नहीं मालूम। पुलिस के मुताबिक वे लोग हर एंगल से इस केस को देख रहे हैं। वे जल्द ही हॉस्टल के दूसरे लोगों से भी बात करने की कोशिश करेंगे।" "लेकिन उन्होंने अभी तक उस एक्स-बॉयफ्रेंड या किसी को भी गिरफ्तार क्यों नहीं किया?' अरिजीत ने
चिल्लाते हुए कहा।
टीवी पर स्टोरी ब्रेक हुए अभी दस मिनट भी नहीं हुए थे, और यह बंदा किसी ना किसी की गिरफ्तारी चाहता था। लेकिन इस पर रिपोर्टर ने जो कहा, वह तो अरिजीत की एक्स-बॉयफ्रेंड थ्योरी से भी ज्यादा मसालेदार था। "देखिए, अरिजीत, हमने भी यह सुना है, अलबत्ता इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है कि इसमें कोई टेररिज्म
बाला एंगल हो सकता है। यू सी, जारा लोन ना केवल मुस्लिम थी, बल्कि कश्मीरी मुस्लिम थी। '
जाहिर हैं, किसी भी कश्मीरी मुस्लिम के साथ कोई वारदात हो जाए तो उसमें टेररिज्म वाला एंगल
घुसेड़ना तो ज़रूरी ही है। लेकिन मुझे तो यही सोचकर राहत मिली कि चंद सैकंड में ही अरिजीत मुझे भूलकर अब दूसरे विषय पर बात करने लगा था।
"एक कश्मीरी मुस्लिम लड़की, जिसका क़त्ल रहस्यपूर्ण परिस्थितियों में कर दिया जाता है। कहीं इसके पीछे कोई गहरी साजिश तो नहीं?' अरिजीत ने कहा।
"हमें अभी तक इस बारे में कुछ नहीं मालूम, अरिजीत,' रिपोर्टर ने विनम्र स्वर में कहा । लेकिन शायद अरिजीत को यह जवाब पसंद नहीं आया। वह आगे झुका, मानो कैमरे के और करीब आने की कोशिश कर रहा हो, और बोला, 'लेडीज़ एंड जेंटलमेन, एक बड़ी ख़बर ब्रेक हो रही है और आपका अपना यह
चैनल सबसे पहले यह ख़बर दिखा रहा है।"
यह सरासर झूठ था। अकेले पुलिस थाने पर ही तीस से ज़्यादा रिपोर्टरों को मैंने देखा था। ये सभी इस स्टोरी को कवर कर रहे थे।
लेकिन इससे पहले कि हम एक ब्रेक लें, हमारे सामने एक बड़ा सवाल है, लेडीज़ एंड जेंटलमेन' अरिजीत ने एक-एक शब्द को चबाते हुए कहा, जैसे इस केस पर उसकी अपनी जिंदगी का दारोमदार हो, 'और वो ये कि क्या अब आतंकवाद की घुसपैठ इंडिया के खास एजुकेशनल इंस्टिट्यूट्स तक भी हो चुकी है?" इसके बाद पतंजलि टूथपेस्ट का एक विज्ञापन दिखाया गया, जिसे किन्हीं ऋषियों के द्वारा दो हज़ार साल
पहले जड़ी-बूटियों से बनाया गया था। विज्ञापन में ऋषि को शांतिपूर्वक ध्यान करते दिखाया जा रहा था। शायद
वे टूथपेस्ट के फॉर्मूले के बारे में सोच रहे होंगे। टीवी पर जो न्यूज़ दिखाई जा रही थी, उसके ठीक विपरीत एक
शांतिपूर्ण माहौल इस विज्ञापन में दिखाई दे रहा था। विज्ञापन बाबा रामदेव के चित्र के साथ समाप्त हुआ। बाबा
रामदेव की मुस्कराहट को देखकर मुझे इससे पहले इतनी खुशी कभी नहीं मिली थी। मैं बिलकुल नहीं चाहता था
कि यह विज्ञापन ख़त्म हो और चैनल फिर से उसी ज़ारा मर्डर केस वाली स्टोरी पर लौट जाए।
लेकिन ज़ाहिर है, जो मैं चाहता था, उसकी किसी को परवाह नहीं थी। चंद ही मिनटों में अरिजीत फिर से
स्क्रीन पर दिखाई दे रहा था और इस बार उसके साथ एक प्रतिष्ठित पैनल भी थी। इसमें छह लोग थे दो समाजसेवी, दो भूतपूर्व पुलिस अधिकारी, कश्मीर में थिंक टैंक चलाने वाला एक व्यक्ति और एक रिटायर्ड आईआईटी प्रोफ़ेसर ये लोग टीवी स्क्रीन पर बनी छह छोटी-छोटी खिड़कियों से झांक रहे थे। टीवी चैनल ऐसा कैसे कर लेते हैं? वे इतनी जल्दी इतने सारे विशेषज्ञों, जिन्हें कोई और काम नहीं होता, का पैनल कैसे बना लेते हैं? एक खिड़की खुद अरिजीत की थी, दूसरों की खिड़की से दोहरे आकार वाली। उसने चर्चा की शुरुआत की। * तो सवाल यह है कि क्या आतंकवाद हमारे प्रतिष्ठित शैक्षिक संस्थानों तक पहुंच चुका है? क्या इस वारदात का कोई टेरर एंगल हो सकता है? और क्या यह घटना यह भी बताती है कि आज दिल्ली में कोई भी
सुरक्षित नहीं है?"
'टेरर वाली बात का तो पता नहीं, कश्मीरी थिंक टैंक वाले व्यक्ति ने बोलना शुरू ही किया था कि एक समाजसेवी महिला, जिसके माथे पर दस रुपए के सिक्के से भी बड़ी बिंदी थी, ने उसकी आवाज़ को दबा दिया। 'टेरर की बात बाद में की जाएगी। मेरा सवाल तो यह है, अरिजीत, कि इतने बड़े इंस्टिट्यूट की सिक्योरिटी कर क्या रही है? दिल्ली पुलिस का क्या रोल है? हौज़ खास पॉश एरिया है। यदि वह इलाक़ा भी सुरक्षित नहीं होगा तो क्या होगा? यह नेशनल कैपिटल है या नेशनल क्राइम कैपिटल है?"